पंडित माखनलाल चतुर्वेदी जी की जीवनी / Makhanlal Chaturvedi Biography In Hindi
माखनलाल चतुर्वेदी / Makhanlal Chaturvedi जिन्हें प्यार से पंडितजी भी कहा जाता है, एक भारतीय कवी, लेखक, निबंधकार, नाटककार और जर्नलिस्ट थे जो विशेष रूप से आज़ादी के लिये होने वाले भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन में अपने सहभाग के लिये जाने जाते है.
चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई ग्राम में हुआ था. जब वे 16 साल के थे तो वे एक स्कूल शिक्षक बने थे. बाद में वे राष्ट्रिय जर्नल प्रभा, प्रताप और कर्मवीर के एडिटर बने और ब्रिटिश राज में उन्होंने इनके जरिये ब्रिटिशो का विरोध भी किया. भारत की आज़ादी के बाद वे भारत सरकार में कार्यरत होना चाहते थे और देश की सेवा करना चाहते थे और इसीके चलते उन्होंने महात्मा गांधी का साथ भी दिया.
हिंदी साहित्य में Neo-Romanticism अभियान के लिये वे जाने जाते है. 1955 में हिंदी के हिम तरिंगिनी में उनके अतुल्य कामो के लिये उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया था. 1963 में भारत सरकार ने उन्हें भारत का नागरिकत्व पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया.
माखनलाल चतुर्वेदी के लेख –
उन्होंने ‘वेणु लो गूंजे धरा’,
हिम कीर्तिनी,
हिम तरंगिणी,
युग चरण
और साहित्य देवता
माखनलाल चतुर्वेदी की कविताये :
दिप से दिप जले,
कैसा चाँद बना देती है
पुष्प की अभिलाषा, (pushp ki abhilasha) में अतुलनीय काम किया है.
“चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ.
चाह नहीं प्रेमी-माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ.
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ.
चाह नहीं, देवों के शिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ.
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक.
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक.”
माखनलाल चतुर्वेदी / Makhanlal Chaturvedi जिन्हें प्यार से पंडितजी भी कहा जाता है, एक भारतीय कवी, लेखक, निबंधकार, नाटककार और जर्नलिस्ट थे जो विशेष रूप से आज़ादी के लिये होने वाले भारतीय राष्ट्रिय आंदोलन में अपने सहभाग के लिये जाने जाते है.
चतुर्वेदी का जन्म 4 अप्रैल 1889 में मध्य प्रदेश के होशंगाबाद जिले के बावई ग्राम में हुआ था. जब वे 16 साल के थे तो वे एक स्कूल शिक्षक बने थे. बाद में वे राष्ट्रिय जर्नल प्रभा, प्रताप और कर्मवीर के एडिटर बने और ब्रिटिश राज में उन्होंने इनके जरिये ब्रिटिशो का विरोध भी किया. भारत की आज़ादी के बाद वे भारत सरकार में कार्यरत होना चाहते थे और देश की सेवा करना चाहते थे और इसीके चलते उन्होंने महात्मा गांधी का साथ भी दिया.
हिंदी साहित्य में Neo-Romanticism अभियान के लिये वे जाने जाते है. 1955 में हिंदी के हिम तरिंगिनी में उनके अतुल्य कामो के लिये उन्हें साहित्य अकादमी अवार्ड से सम्मानित किया गया था. 1963 में भारत सरकार ने उन्हें भारत का नागरिकत्व पुरस्कार पद्म भूषण से सम्मानित किया.
माखनलाल चतुर्वेदी के लेख –
उन्होंने ‘वेणु लो गूंजे धरा’,
हिम कीर्तिनी,
हिम तरंगिणी,
युग चरण
और साहित्य देवता
माखनलाल चतुर्वेदी की कविताये :
दिप से दिप जले,
कैसा चाँद बना देती है
पुष्प की अभिलाषा, (pushp ki abhilasha) में अतुलनीय काम किया है.
“चाह नहीं मैं सुरबाला के, गहनों में गूँथा जाऊँ.
चाह नहीं प्रेमी-माला में, बिंध प्यारी को ललचाऊँ.
चाह नहीं, सम्राटों के शव पर, हे हरि, डाला जाऊँ.
चाह नहीं, देवों के शिर पर, चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ.
मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक.
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने, जिस पथ जाएँ वीर अनेक.”
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